Friday, December 9, 2011

अब मांगे हैं वो दिल का आइना शक्ल के लिए |

खूने-जिगर दिया  हमने कंदीले-महल के लिए,
अब मांगे हैं वो दिल का आइना शक्ल के लिए |
हसरत-ए - वस्ल  दिल में तो शायद कभी हमे,
कोई वक़्त मिल  जाएगा एजद-वस्ल के लिए|

मेरा कातिल कहाँ है ? कोई तो बताओ मुझे ,
मै हाज़िर हो गया उनके हाथों क़त्ल के लिए|
कुछ पाने के लिए खोना भी पड़ता है कुछ,
छोड़ दिया खुल्द आदम-हव्वा ने अज़ल के लिए |

दो अलफ़ाज़ लिखना भी मुश्किल हुआ है बज़्म में,
तन्हाई चाहिए मुझको मेरी ग़ज़ल के लिए|

2 comments:

  1. कुछ पाने के लिए खोना भी पड़ता है कुछ,
    छोड़ दिया खुल्द आदम-हव्वा ने अज़ल के लिए |
    nice

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