Tuesday, January 17, 2012

बन कर गुल हम महकते रहे तमाम उम्र

अब्रे-नफरत हम पर बरसते रहे तमाम उम्र |
इक कतरा-ए-उंस को तरसते रहे तमाम उम्र ||
 

चाहे बन कर गुल हम महकते रहे तमाम उम्र |
पर उनकी जुल्फों को तरसते रहे तमाम उम्र||
 

वो ना आये फिर लौटकर आज तक जिंदगी में ,
हम तो उनका इंतज़ार करते रहे तमाम उम्र |
 

उनको भी तो आएगी उल्फ़त हम पर कभी तो ,
बस सोच कर यही हम संवरते रहे तमाम उम्र |
 

सुहबत तो अच्छी थी मगर जानते नहीं हैं हम ,
कैसे  कदम  हमारे  बहकते  रहे  तमाम  उम्र ||


2 comments:

  1. इंतजार कि बेहतरीन प्रस्तुती दिल को छु
    गई रचना ..

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  2. धन्यवाद रीना मौर्या जी ... उत्साहित करने हेतु हार्दिक आभार

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