Monday, April 23, 2012

चौराहे पे हुई इबादत को कम ना आंकिये

झूठ के दौर में भी सदाकत को कम ना आंकिये ।
वतन के लिए हुई शहादत को कम ना आंकिये ।।

झुका देती है अक्सर ही  वो रियासतों  को ,
मजबूर आदमी की बगावत को कम ना आंकिये ।।

बुझ  गए  है  जो  जद्दोज़हद में  आँधियों  से ,
उन चिरागों की शहादत को कम न आंकिये ।।

गिरा देती है अक्सर बड़े-बड़े हाथियों को भी ,
अदानी-सी चींटी की ताकत को कम ना आंकिये ।।

शमा  को  फर्क  पड़े  या  न पड़े कोई बात नहीं ,
परवाने की जल मरने की आदत को कम न आंकिये  ।।

बड़े -बड़े ढेर भी अक्सर राख हो जाते है पलों में  ,
बुझती चिंगारी की  घास से अदावत को  कम ना  आंकिये ।।

ज़रूरी नहीं कि मंदिर जाऊं मैं खुदा के लिए  ,
चौराहे पे हुई इबादत को  कम ना आंकिये ।।

रुसवा करने को काफी होता है एक इशारा ही ,
"नजील" बज़्म में आँखों की शरारत को कम ना आंकिये 
 

Wednesday, March 28, 2012

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही

हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |
हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||
.
वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,
उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |
.
मजबूरी का बनके पासबां मैं ,
अरमान अपने ही लूटता हूँ |
.
अपना गम छुपाने के लिए अब,
मैं हाल औरों से पूछता हूँ |
.
मैं आज नफरत के दौर में भी,
तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |
.
हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,
दिन में कई बारी टूटता हूँ ||

Wednesday, March 21, 2012

माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं

माहो-अख्तर के बिना आसमां  हूँ मैं ,
.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |

अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
पढने वालों के लिए  इम्तहाँ हूँ मैं |
.
चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा ,
उस दौलत -ऐ-हुस्न का पासबाँ हूँ मैं |
.
छिप सकता है दर्द तेरा ,भला कैसे
तुम्हारे हर राज़ का राज़दां हूँ मैं |
.
या एजद! जाऊं कहीं और मैं कैसे ,
जब तेरे दर का संगे- आस्तां हूँ मैं|
.
कोई भी आकर बसे तो ख़ुशी होगी,
बहुत  वक्त से एक सूना मकां हूँ मैं |
.
माना  लिखता हूँ सुख़न मैं बहुत अच्छा  ,
फिर भी ग़ालिब -सा सुख़नवर कहाँ हूँ मैं |

Wednesday, February 29, 2012

निभाएगी साथ उल्फत जब तलक उनकी ||

जुदाई के नाम आँखे आई छलक उनकी ||
दर्द के अहसास से खुद-ब-खुद झुकी पलक उनकी ||


कभी हारेंगे नहीं हम अपने  दुश्मन ज़हां से ,
निभाएगी साथ उल्फत जब तलक उनकी ||


खुदा जाने ,हाल होगा उनका भी अपने जैसा ,
जिस तरह हम तरसते हैं पाने को झलक उनकी ||


बहाएं अश्क शब् की तन्हाई में बैठ कर वो ,
सुनाए है दास्ताँ अक्सर हमको फलक उनकी ||


"नजील" अब्र भी शर्माए है देखकर ये नज़ारा ,
घटा बन के आसमां पे छाई जो अलक उनकी ||

Tuesday, February 21, 2012

करके दिन रात बन्दगी खुदा से

करके दिन रात बन्दगी खुदा से ||
मांगी  अपनी ज़िन्दगी खुदा से ||
 

डर कैसा है मौत का अब हमें ,
जब है अपनी दोस्ती खुदा से ||
 

इस उम्मीद पर जिन्दा रहे हम
कि वस्ल होगा लाज़मी खुदा से ||
 

छोड़ खुदा को पूजें आदमी को ,
अब ऊंचा हुआ आदमी खुदा से ||
 

बख्श दी है हस के "नजील" हमको,
मांगी थी जो सादगी खुदा से

Wednesday, February 15, 2012

जब हो गए हैं तेरे राजदां हम

मालूम न हुआ कब हुए जवां हम ||
पार कर गए बचपन की आस्तां हम ||


तब भी वालिदा को लगे तिफ्ल ही  ,
करके तरक्की छू लें आसमां हम ||
 

अब ना है कुछ छिपाने की जरूरत ,
जब हो गए हैं तेरे राजदां हम ||
 

उनसे दूर है तो क्या हुआ फिर ,
उनको आज भी भूले हैं
कहाँ हम ||
 

गुजरें है "नजील" उनकी गली से ,
अक्सर देकर इश्क का इम्तिहां हम ||

Tuesday, February 7, 2012

डूबा यादों का सफीना

डूबा यादों का सफीना माजी के बहर में ||
न मिला उसको ढूंढना चाहा हर इक लहर में ||
 

बोला न कोई मुहब्बत से ,हम से दोस्तों ,
हम अजनबी हुए हैं अपने ही शहर में ||
 

गर दे हैं वो ज़हर भी हमको अपने हाथ से ,
लगती है अज़ब  मिठास हमको उनके ज़हर में ||
 

खण्डहर हुए अरमान मेरे साथ वक्त के तो क्या ,
है इक रशिमे-नूर अरमानों के खण्डहर में ||
 

वो पूछें हैं हाल ,मगर बताएं कैसे उसे ,
कैसे महफूज़ रह सकते हैं ऐसे कहर में ||

Monday, January 30, 2012

मेरी नाकाम हुई कोशिशो को सोचता हूँ

मुझ पर चलते दौरे -गर्दिशों को सोचता हूँ ||
उस सबब लगी खुद  पर बंदिशों   को सोचता हूँ ||
 

मजबूरी के सबब हुई न पूरी आज तक  जो ,
मैं दिल में दफ़न उन ख्वाहिशों को सोचता हूँ ||
 

तन्हा, यादों में जब  बैठता हूँ मैं कभी तो ,
उनके साथ  बिताई बारिशों को सोचता हूँ ||
 

सर्द हवाओं के मौसम में  ना जाने क्यों  मैं ,
हर बार तेरी साँसों की तपिशों को सोचता हूँ ||
 

इक छोटे -से झगडे से हुई गलतफहमी  से ,
आज हमारे दरमियाँ रन्जिशों को सोचता हूँ ||
 

अपनी जिंदगी में किसी की मुहब्बत पा सकने की ,
मेरी  नाकाम  हुई   कोशिशो  को  सोचता  हूँ ||

Monday, January 23, 2012

महफूज़ रखी है अपने पास हर शै उनकी


हो जाए है शरारत अक्सर जवानी  में |
आये है मोड़ ऐसा  हर जिन्दगानी में ||
 

किसको कह दे बुरा और किसे कहें अच्छा ,
कोई किरदार ना है अपनी कहानी में |
 

हम  कैसे कामयाब होते अपने मकसद में,
सबसे कमजोर जो थे हम  दिल-सितानी में |
 

आसान किस तरह कहें  सफरे-मुहब्बत को,
आयें लाखों  मुशिकलें इस की रवानी में |
 


महफूज़  रखी है अपने पास हर शै उनकी ,
जो दी थी उसने कभी उल्फत की निशानी में


Tuesday, January 17, 2012

बन कर गुल हम महकते रहे तमाम उम्र

अब्रे-नफरत हम पर बरसते रहे तमाम उम्र |
इक कतरा-ए-उंस को तरसते रहे तमाम उम्र ||
 

चाहे बन कर गुल हम महकते रहे तमाम उम्र |
पर उनकी जुल्फों को तरसते रहे तमाम उम्र||
 

वो ना आये फिर लौटकर आज तक जिंदगी में ,
हम तो उनका इंतज़ार करते रहे तमाम उम्र |
 

उनको भी तो आएगी उल्फ़त हम पर कभी तो ,
बस सोच कर यही हम संवरते रहे तमाम उम्र |
 

सुहबत तो अच्छी थी मगर जानते नहीं हैं हम ,
कैसे  कदम  हमारे  बहकते  रहे  तमाम  उम्र ||


Tuesday, January 10, 2012

शमए-उम्मीदे -वस्ल जलती रही

जाने कितनी शामें हिज़्र में ढलती  रही | 
पर इक शमए-उम्मीदे -वस्ल जलती रही ||

चाहे पा न सके हम कोशिशो  के बाद भी ,
दिल में उनको पाने की मंशा पलती रही ||
 

वक्ते-हनोज़ कटा है जो फुरकते -यार में,
उसमें हमारी रूह तर्हे-मोम पिघलती रही ||
 

छोड़ा ना दिल हमने मुश्किलाते- हियात में ,
कुछ-बादे वक्त इक -इक  होके  टलती रही ||
 

आगाज़े-शिकस्ते-कीमते-दिल जब हुई ,
तो भी अपने दिल की कीमते बढती रही ||
 

माहिर थे  हम फने-दिलसितानी में पर,
उनको न पाने में हमसे  कहाँ गलती रही||
 

खाना-जादे-ज़ुल्फ़ हुए "नज़ील" हम उनके ,
जीना बेहाल हुआ पर साँसे चलती रही ||



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