Friday, August 25, 2023

जिंदगी मेरी कहाँ जाके गई है तू ठहर ॥

जिंदगी मेरी कहाँ जाके गई है तू ठहर ॥
ले गई है फिर वहां ,जो छोड़ आया था शहर

है खुदा भी एक ,एक ही आसमां , एक ही ज़मीं
सरहदों पर किस लिए हमने मचाया है कहर   

मारता आया है बरसों बाद भी अक्सर हमें ॥
घुल गया था जो दिलों में लकीरो का जहर

भूल कर भी भूल सकता हूँ भला कैसे उसे ,
वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर

वायदा करके नहीं आये अभी तक क्यों भला ,
यूँ अकेला बैठ कर कब तक गिनूँगा मैं पहर ।

सूखी थी दिल की ज़मीं ,आबाद जो फिर से हुई ,
यूँ लगे है छू गई इसको मुहब्बत की लहर ॥
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